सौदा करने चले इश्क़ का तो अपना मन बेच दिया / रंजना वर्मा
सौदा करने चले इश्क़ का तो अपना मन बेच दिया
उस का मिला इशारा तो आँखों का अंजन बेच दिया
थी मुफ़लिस अपने बच्चों की भूख नहीं सह पायी तो
माँ ने अश्क़ छिपा आँखों में अपना ही तन बेच दिया
था भ्रम प्रगतिशीलता का जब से हमने मन में पाला
जन्मों तक था साथ निभाने वाला बन्धन बेच दिया
था नीलाम किया ईमां को सत्य अहिंसा को बेचा
जो आदर्श रहा है दुनियाँ का वह जीवन बेच दिया
नफ़रत की दीवार उठा दी हर घर के हर आँगन में
दिल खुश करने वाली खुशबू वाला उपवन बेच दिया
जो अस्मिता देश की था जिस पर न निगाह ठहरती थी
सत्ता पा धरती माँ का वह भोला यौवन बेच दिया
मिट्टी खुद अपनी कीमत बतलाने को दर दर भटकी
मुट्ठी भर पत्तों की ख़ातिर दिलकश सावन बेच दिया
धोखा दे कर दिखा दोस्ती भोंक रहा है जो खंजर
थोड़े से सिक्कों की ख़ातिर उस को गुलशन बेच दिया
किस्सा हँसी छेड़ किलकारी से जो गूँजा करता था
जब सब चले तरक्की करने तब वह आँगन बेच दिया