भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्कूल / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घंटी बजती है
बच्चे आते हैं
नींद में भरे-भरे
किताबों से लदे-लदे

घंटी बजती है
बच्चे जाते हैं
सहमे-सहमे, डरे-डरे
थके-थके और मरे-मरे

स्कूल में तितली नहीं दिखती
चिड़िया नहीं गाती
पानी कल-कल नहीं करता
पेड़ों की छाँव रूठ जाती है
बच्चों की दुनिया टूट जाती है

रचनाकाल : 1987