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स्तुति शाह सैयद बरकत उल्लाह बिलग्रामी / रसलीन

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चहुँ दिसान बाग बने सुंदर तरु बनें
मन चीते फल देत रीत पारजात के।
ताके मध मंद यह अनूप जोति रूप सोहै
पंथ को दिखैया और बतैया बात घात के।
सकल कलेस दुख कलह बिमुख कर
ल्यावत बिपख सुभ गति सुख सात के।
आनँद च्छाह लहै भूल जात मुक्ति चाह
देखे दरगाह यह साह बरकात के॥20॥