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स्वप्न और सत्य / रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'
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स्वप्न है संसार, तो किस सत्य के कवि गीत गाए
तोडकर अपना हृदय किस सत्य की प्रतिमा बनाए?
कौन-सा वह! कौन-सा सुख, फूल को जो फल बनाता,
दूज का क्यों चांद दौडा पूर्णिमा की ओर जाता?
जागती पिक की कुहुक से प्राण में कैसी कहानी,
रूप स्वप्नातीत किसका रात कर देता सुहानी?
गंध से आतुर समीरण, ज्योति से उमडे सितारे,
स्नेह से फैली नदी, सौंदर्य से जकडे किनारे,
लोच भर देती हवा में खेतियां क्यों लहलहातीं,
जान पड जाती किरण में सुन खगों की क्यों प्रभाती?
स्वप्न हैं ये सब अगर, किस सत्य के कवि गीत गाए
कौन सुषमा से बडा संदेश मानव को सुनाए?