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स्वेद की सुगंध / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
शब्दों के अर्थ गहो
भावों के सिन्धु बहो
रोपो धरती पर पग
चाहे घन-पार रहो
सुरभित साँसों के संग, गरम उसाँसों का-
उत्ताप वहन करो, वहन करो, वहन करो
छुट्टा मत छोड़ो उसे, बाँधो छवि-छंद में
एक तरफ चक्रव्यूह काशी की गलियाँ हैं
और दूसरी ओर भ्रमरखाह साँड़ फिरा करते हैं
करूण से सिक्त नयन-मेघ घिरा करते हैं
जब तक यह देह, बंधनों से कब मुक्ति मिली
धरती का ऋण भी तो रमा रंध्र-रध्र में
कविता को पनपाओ स्वेद की सुगंध में
छुट्टा मत छोड़ो उसे, बाँधो छवि-छंद में