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हँसती है घास /राम शरण शर्मा 'मुंशी'

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एक धार मार कर
चली गई
बयार ।

         सिहर रहा
         मन अब तक,
         घाव
         आर-पार ।

हँसती है
घास
आस-पास —

         हँसते हैं
         रक्त-रंगे
         ढीठ चिनार !