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हँसि-हँसि झूलत ड्डूल-हिंडोरें / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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हँसि-हँसि झूलत ड्डूल-हिंडोरें।
प्यारी-प्रीतम ड्डूलनि ड्डूले, ड्डूले उर कर जोरें॥
ड्डूलन कौ लहँगा, ड्डूलन कौ पीतांबर अति सोहै।
ड्डूलन के सिर मुकुट-चंद्रिका देखत ही मन मोहै॥
ड्डूलन के तोसक-तकिया मृदु, ड्डूलनि आसन राजैं।
ड्डूलन के पहिरें भूषन तन सुंदर दो‌उ बिराजैं॥
ड्डूलत-झूलत दै गर बैयाँ ड्डूले अँग-‌अँग सारे।
ड्डूले नयन नचावत दो‌ऊ रतनारे अनियारे॥
ड्डूलनि साज सजी सखिगन सब ड्डूलनि माँग सँवारी।
ड्डूल सजे कर ड्डूल-चँवर लै ढुरवति मृदु सखि प्यारी॥
परमानंद झुलावति कर लै ड्डूल रेसमी डोरी।
मृदु-मृदु झोटा देत मुदित मन ड्डूलि रहीं सब गोरी॥
राधा-माधव-नेहरूप सुचि ड्डूलन की ड्डुलवारी।
बाँटि रही सुषमा-सुगंध निज दिय उच्च मनवारी॥