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हम अपने ख़याल को / शमशेर बहादुर सिंह

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हम अपने ख़याल को सनम समझे थे

अपने को ख़याल से भी कम समझे थे

होना था- समझना न था कुछ भी, शमशेर,

होना भी कहाँ था वह जो हम समझे थे !


(रचनाकाल : 1945)