भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम हियइ गत्तर किसान / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खेतिये पर उगऽ ही
खेतिये पर डूबऽ ही
खेतिये पर हम्मर बिहान
भइया हो
हम हिअइ गत्तर किसान

जेठ हेंठ होतइ
पड़लइ गन पनियाँ
जे हमरा ले सोना समान
कारा अउ सउँरा के
बजलइ घुंघुरूआ कि
लगना पर हाथ देलूं तान
भइया हो
खेतिया हइ देशवा के शान

चंदन सन हमरा ले
भदवा के कदवा हइ
टिक्का तरेंगना अउ चान
फट के उपजलो जो
धान अउ भदइया कि
अगहन हो सरगे समान
भइया हो
ईहे हको जान अउ परान

अलुआ सकरकन्द
रबिया मिचइया कि
सरसोइया खेत खरिहान
अगरऽ ही टीन बजा
गिदरा अउ कउआ के

भगवऽ ही चढ़ के मचान
भइया हो
दूध् ढारी गोरइया थान
खेतिये से पूर होबे
सपरल सपनमां कि
खेतिये हइ जिया अरमान
एकरे पर रज गज
देश अउ जहनमां कि
सीमा पर हंकड़इ जवान
भइया हो
एकरे पर उड़इ विमान।