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हमारा चाहने वाला / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
हमारा चाहने वाला
जब ज़रूरत से ज़्यादा
अपेक्षाएँ करने लगता है हमसे
को वह हमारे लिए
स्वादिष्ट भोजन की तरह होकर भई
उदरशूल उठाता
वायुविकारी हो जाता है
पूरी की पूरी दिनचर्या ही
बदल जाती है उसकी
और वह
हिंसक पशु में तब्दील होकर
जाने कब
अपनी ही अकर्मण्य इच्छाओं की
अँधेरी गुफ़ाओं में बैठा
नाखून बजाने लगता है
हमारा चाहने वाला
जब अनर्गल अपेक्षाएँ
करने लगता है हमसे
तो वह-
भाषा के संस्कारों से भटककर
दाँत किटकिटाता हुआ
हिंसक ध्वनियों का रचाव करने लगता है
और ध्वस्त करने लगता है
हमारा ही रचा संसार हमारे सामने