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हमारे नाम पे अक्सर ये हर्फ़ आता है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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हमारे नाम पे अक्सर ये हर्फ़ आता है
हवा इधर की चले तो उधर को जाता है

उस आदमी के लिए चन्द अश्क रख लेना
बहुत उदास अगर हो तो खिलखिलाता है

ज़रा तो उसकी वफ़ाओं का एहतराम करो
कोई अज़ीज़ लगे फ़ासले बढ़ाता है

कोई उम्मीद नहीं कोई पासबाँ भी नहीं
हवा के दर पे मुसलसल दीये जलाता है

ये रहज़नों का शहर में है कौन दीवाना
जो हर किसी को सही रास्ता बताता है

गिले हज़ार हों ‘परवेज़’तुझको लोगों से
तुझे ख़बर है तू सबको गले लगाता है