भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर एक ख़्वाब की ताबीर थोड़ी होती है / हुमेरा 'राहत'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर एक ख़्वाब की ताबीर थोड़ी होती है
मोहब्बतों की ये तक़दीर थोड़ी होती है

कभी कभी तो जुदा बे-सबब भी होते हैं
सदा ज़माने की तक़सीर थोड़ी होती है

पलक पे ठहरे हुए अश्क से कहा मैं ने
हर एक दर्द की तशहीर थोड़ी होती है

सफ़र से करते हैं इक दिल से दूसरे दिल तक
दुखों के पाँव में ज़ंजीर थोड़ी होती है

दुआ को हाथ उठाओ तो ध्यान में रखना
हर एक लफ़्ज़ में तासीर थोड़ी होती है