भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर बात जो तुम कहते हो सच्ची तो नहीं / रमेश तन्हा
Kavita Kosh से
हर बात जो तुम कहते हो सच्ची तो नहीं
हर बात जो मजे कहता हूँ झूठी तो नहीं
क्याभो गया दुनिया को कि कुछ होता रहे
सुनती ही नहीं किसी की, बहरी तो नहीं?