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हरा न होगा / केशव शरण
Kavita Kosh से
वह ठूँठ-सा पेड़
जो प्यास से सूख गया था
इस वक़्त
कैसा पी रहा है पानी
नदी में शीश डुबाकर
पर अब वह
पूरी नदी ही सोख ले तो भी
हरा न होगा