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हाइकु 157 / लक्ष्मीनारायण रंगा

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मिलावट ! ना
सिंथेटिक क्रांति है
जन हित में


ठंढे पाणी रो
निगळ जावै घड़ो
नाख दै खुणै


सांझ सदीव
लागै म्हनैं उदास
थारै दाई ई