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हाथऽ आरती हो बाघेसरी ठाड़ा रह्या / निमाड़ी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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हाथऽ आरती हो, बाघेसरी ठाड़ा रह्या,
जोवऽ ते पोहा की बाट,
गढ़ रे गुजरात पोहो सबई आयो,
नहीं आई म्हारी भोळई निमाड़।
भोळई निमाड़ का रे अमुक भाई,
काहे मंऽ रहया बिलमाय?
कसोक छे रे देवी थारो मानवई
कसीक छे रे निमाड़,
कालो घोड़ो रे खुर बाटळो
पातळियो छे असवार,
कांधऽ खड़ियो, रे हाथऽ लाकड़ी,
मोठा जी भाई, जै बोलता आवऽ
ज्वार रे तोर को रे, देवी म्हारो घावणो,
माया मंऽ रहयो बिलमाय!