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है ई कोनीं कोई / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
सुरजी
फेर तप्यो है
दिप्यो है
कण-ख़ाण धरा रो
काळीबंगां रै थेड़ में
नीं ढूंढै छींयां
तपते तावड़ै
नीं कोई आवै
नीं कोई जावै
है ई कोनीं कोई
जको ताणै
तावड़ै में छातो
बो देखो
गयो परो
आगूण सूं आथूण
थेड़ नै डाकतो सुरजी।