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हो गए जज्बात सब पत्थर / प्रताप सोमवंशी
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हो गए जज्बात सब पत्थर मगर बोलूंगा मैं,
है तुम्हारे हाथ में खंजर मगर बोलूंगा मैं|
तू समझ दीवानगी या और कोई नाम दे,
वो गया है बात ये कहकर मगर बोलूंगा मैं|
भीड़ से कोई अलहदा बात होनी चाहिए,
सब रहे खामोश बुत होकर मगर बोलूंगा मैं|
बेबसी हो मुफलिसी या दूसरी मजबूरियां,
रोकती हैं ये सभी अक्सर मगर बोलूंगा मैं|
बोलने की सजा जो यह हुआ माहौल है,
कत्लो-गारत लाश का मंजर मगर बोलूंगा मैं|