भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होली है जी होली है / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होली है जी होली है, बुरा न मानो होली है।
रंग खेलने निकली सबसे फिर बच्चों की टोली है।

रंग-अबीर-गुलाल लिये हैं,
हाथों में पिचकारी।
आज न बचने पाये कोई,
ऐसी है तैयारी।
'पापा-मम्मी को रँग दूँगी' गुड़िया रानी बोली है।
होली है जी होली है, बुरा न मानो होली है।

कोई लाल-लाल दिखता है,
कोई-काला-काला।
लंगूरी बन्दर-सा दिखता,
सबका रूप निराला।
कोई ऐसा रंग-बिरंगा जैसे रँगी रँगोली है।
होली है जी होली है, बुरा न मानो होली है।

होली का आनंद उठायें,
गुझिया-पापड़ खायें।
सबके साथ सदा हिल-मिल कर,
हम त्यौहार मनायें
हर कोई प्यारा है अपना हर कोई हमजोली है।
होली है जी होली है, बुरा न मानो होली है।