'विदाई' कविता-क्रम से-2 / मरीना स्विताएवा
जिस धीरज के साथ कूटी जाती है बजरी,
जिस धीरज के साथ किया जाता है मौत का इन्तज़ार,
जिस धीरज के साथ पुरानी पड़ती है ख़बरें,
जिस धीरज के साथ पाला जाता है प्रतिशोध --
मैं करूँगी तुम्हारा इन्तज़ार
जिस तरह इन्तज़ार करती हैं महारानियाँ अपने प्रेमियों का
जिस धीरज के साथ इन्तज़ार किया जाता है तुकान्तों का,
जिस धीरज के साथ चबाए जाते हैं दाँतों से हाथ,
मैं करूँगी तुम्हारा इन्तज़ार ज़मीन पर नज़रें गड़ाए,
दाँतों में होंठ होंगे । पत्थर । दीवार ।
जिस धीरज के साथ काटे जाते हैं सुख के दिन,
जिस धीरज के साथ हारों में गूँथे जाते हैं मनके ।
स्लेज की चरमराहट.... दरवाज़ों की जवाबी चरमराहट,
तेज़ हवाओं की सरसराहट ।
आ गया है वह शाही फरमान --
राजाओं और सामन्तों को शासनच्युत करने का ।
आओ, घर चलें :
अलौकिक --
लेकिन अपने ।