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'सिबिल्ल' कविता-क्रम से / मरीना स्विताएवा / वरयाम सिंह
Kavita Kosh से
काल से तोड़कर सारे सम्बन्ध
पत्थर की तरह
तुम्हारा शरीर बन गया है गुफ़ा
तुम्हारी आवाज़ की ।
रात है भीतर ... आसपास
किले की आँखों का अन्धापन,
गूँगा-बहरा किला
रंगीन किसान औरतों के ऊपर ।
मूसलाधार बारिश पड़ रही है कन्धों पर
फफून्दी लग रही है कुकुरमुत्तों पर ।
शताब्दियाँ नाच रही हैं
पत्थरों के भावशून्य ढेरों के पास ।
बदक़िस्मत हैं पहाड़
पलकों के नीचे दूरदर्शी अन्धेरे में
बिछे हैं साम्राज्यों के अवशेष
और योद्धाओं की राख ...।
06 अगस्त 1922
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह