अँधियारे से  डर  रक्खा है 
अपने साथ सहर रक्खा है 
मिले न मंजिल खत्म न हो जो
उस का  नाम  सफ़र रक्खा है 
बेटी की खुशियों की ख़ातिर
छाती  पर  पत्थर  रक्खा  है 
एहसासों की खुशबू से ही
हम ने  दामन तर रक्खा है 
कोई कुछ भी कहे बेटियों
को हमने बेहतर रक्खा है 
बीते दिन प्यारी यादों को
इस सीने में  भर रक्खा है 
उड़ न सकेगा मन का पंछी
हम ने  पंख कतर रक्खा है