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अँधेरे में उतार दी गई वह / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
उसकी आँखों में मीलों तक फैला था सन्नाटा
और मीलों तक फैली थी उदासी
वह इतनी बेख़बर थी खु़द से
कि अपनी परछाई भर थी
उसके बहुत पास से बह रही थी
तकलीफ़ की एक निःशब्द नदी
और चेहरे पर था बियाबान ध्वंस का अवशेष
काँच के गिलास की तरह
टूट कर बिखर चुकी थी उसकी स्मृति
वह नहीं जानती थी
कि उसे जाना था किधर और करना है क्या
वह चाहती थी सिर्फ़ बैठना
इस रिज़र्व कम्पार्टमेण्ट की किसी सीट पर
लेकिन कहीं नहीं थी कोई जगह उसके लिए
किसी ने नहीं जाना उसका अतीत
किसी ने नहीं जाना उसका दर्द
एयरकंडीशंड डिब्बे की अपनी सीटों पर
सोने की तैयारी में लगे यात्री
बस निज़ात पाना चाहते थे उससे
इसलिए उतार दी गई वह
कौन थी वह? कहाँ गई?
और क्यों गड़ रही है वह मेरी नींद में आज तक?