अंग दर्पण / भाग 10 / रसलीन
हमेल-वर्णन
निजगुन जंत्र दिखाय के तिय हमेल हिय पाय।
कलिजुग साधन रीति गल डारत जेल बनाय॥103॥
बाँह-वर्णन
चलत हलत नित बाह तुव देत कोटि जिय दान।
याही ते सब कहत है सुधा लहर परिमान॥104॥
सुधा लहर तुब बांह के कैसे होत समान।
वा चखि पैयत प्रान को या लखि पैयत प्रान॥105॥
कित दिखाइ कामिनि दई दामिनि की यह बांह।
तरफरात सीतन फिरै फरफरात धन मांह॥106॥
भुज-वर्णन
छाई चख भाई हिया ल्याई चित को चाय।
भाई आई भुजन पै सांई क्यों न लुभाय॥107॥
पहुँची-वर्णन
लालन के मन दृगन को रही चोप यह आन।
पहुँची बन पहुँची कहूँ प्यारी के पहुचान॥108॥
अंगुरी दिपति मरीचिका चंद हथेरिन साथ।
तम सौतिन जिनि ठेलि पिय पिय चकोर किय हाथ॥109॥
करअंगुरी-वर्णन
मोहन सोषन बसिकरन उनमादन उचटाय।
मदन सरन गुन तरुनि कर अंगुरिन लयो छिनाय॥110॥
अंगुरी पोर-वर्णन
तिय प्रति अंगुरिन फलन मैं त्रयत्रय पोर सुहाय।
तीन लोक बसकरन को बीज बये हैं आय॥111॥
नखयुत अंगुरी-वर्णन
यों अंगुरी तिय करन की लागत नखन समेत।
औषधीस गुन अमिय मनु जीवन मूरिन देत॥112॥
मेंहदी-वर्णन
बारह मंगल रास गुनि सोई सब मिलि आय।
उभय हथेरिन दस नखन मेहदी भई बनाय॥113॥
दिपति हंथेरिन की दिपति यो मेंहदी के संग।
लाली सावन सांझ में ज्यों सूरज के रंग॥114॥
यों मेंहदी रंग में लसत नखन झलक रसलीन।
मानों लाल चुनीन तर दीन्हों डाक नवीन॥115॥