अंग दर्पण / भाग 15 / रसलीन
नितंब-वर्णन
सुबरन सुवृत नितंब जुग यौं सोहत अभिराम।
मनु रति रन जीते घरे उलटि नगारे काम॥156॥
बा नितंब जुग जंघ के उपमा को यह सार।
मानों कनक तमूर दोउ उलटि धरे करतार॥157॥
जंघा-वर्णन
सीस जटा धरि मौन गहिं खड़े रहे इक पाय।
थे तो तप केदली तऊ लहै न जंघ सुभाय॥158॥
गौरे ढोरे जंघ तुव बोरे सुबरन माँह।
कोरि निहोरे नाह पै गए निहोरे नाँह॥159॥
उरु-वर्णन
प्यारे उरु तकि तक दिपति अंबर मे न समाय।
दीप सिखा फानुस लों न्यारे झलकत आय॥160॥
पद-वर्णन
तुव पद समतन पदुम को कह्यो कवन विधि जाय।
जिन राख्यो निज सीस पर तुव पद को पद लाय॥161॥
पगलाली-वर्णन
लिखन चहौं मसि बोरि जब अरुनाई तुव पाय।
तब लेखनि के सीस के ईगुर रंग ह्वैं जाय॥162॥
एड़ी-वर्णन
जो हरि जग मोहित करीं सो हरि परे बेहाल।
कोहर सी एड़ीन सो को हरि लियो न बाल॥163॥
पदतल वर्णन
तुब पगतल मृदुता चितै कवि बरनत सकुचाहिं।
मन में आवत जीभ लौं मन छाले परिजाहिं॥164॥