अंग दर्पण / भाग 17 / रसलीन
अनवट-वर्णन
ओट करन हित जात हैं केहूँ इनके चोट।
विधि याही विधि ते धरयों इनके नाम अनोट॥172॥
कलस सात बिछियान के विधि अति सुबुध बनाय।
सप्तदीप राजान के मुकुट धरे तुव पाय॥173॥
गति-वर्णन
तुव गति लखि गज खेह सिर डारै कौन लोभाइ।
जा सीखत ही हंस के लोहू उतरत पाइ॥174॥
सम्पूर्ण नायिका-वर्णन
नवला अमला कमल सी चपला सी चल चारू।
चंद्रकला सी सीतकर कमला सी सुकुमारु॥175॥
मुख ससी निरखि चकोर अरु तन पानिप लखि मीन।
पद पंकज देखत भँवर होत नयन रसलीन॥176॥
हाव-भाव वर्णन
हाव भाव प्रति अंग लखि छबि की झलकन संग।
भूलत ग्यान तरंग सब ज्यों कुरछाल कुरंग॥177॥
वसन वर्णन
लाल पीत सित स्याम पट जो पहिरत दिनरात।
ललित गात छवि छायके नैनन में चुभि जात॥178॥
सिखनख पूर्णता वर्णन
ब्रजवानी सीखन रची यह रसलीन रसाल।
गुन सुबरन नग अरथ लहि हिय धरियो ज्यों माल॥179॥
अंग अंग को रूप सब यामें परत लखाय।
नाम अंग दरपन धरयों याही गुन ते ल्याय॥180॥
सत्रह सौ चौरनबे सम्वत में अभिराम।
यह सिख नख पूरन कियों ले श्री प्रभु को नाम॥181॥
॥इति श्री सुकवि सिरमौर रसलीन बिलगिरामी विरचित अंगदर्पण समाप्त॥