अंग दर्पण / भाग 4 / रसलीन
नेत्र-वर्णन
अमी हलाहल मद भरे सेत स्याम रतनार।
जियत मरत झुकि झुकि परत जिहि चितवत इकबार॥35॥
कारे कजरारे अमल पानिप ढारे पैन।
मतवारे प्यारे चपल तुव ढुरवारे नैन॥36॥
तुरँग दीठि आगे धर्यो बरुनी दल के साथ।
तेरे चख मख के जगत कियो चहत है हाथ॥37॥
पुतरी-वर्णन
तन सुबरन के कसत यों लसत पूतरी स्याम।
मनौ नगीना फटिक मैं जरी कसौटी काम॥38॥
जो ‘रसलीन’ तियान में रहे बीचित्र कहाय।
ते पाहन पुतरी भये लखि तुव पुतरी भाय॥39॥
कोया-वर्णन
कोयन सर जिनके करे सो इन राखे ठौर।
कोयन लीयन ना हनों कोयन लोयन जोर॥40॥
काजर-वर्णन
रे मन रीति विचित्र यह तिय नैनन के चेत।
विष काजर निज खाय के जिय औरन के लेत॥41॥
दृग दारा लखि ज्यों लह्यो दीपक जातक भाय।
जग के घातक पाय के लागत पातक धाय॥42॥
काजर-कोर वर्णन
तिय काजर कोरें बढ़ी पूरन किय कवि पच्छ।
लखियत खंजन पच्छ की पुच्छ अलच्छ प्रतचछ॥43॥
नेत्र-डोर वर्णन
अंजन गुन दोरत नहीं लोयन लाल तरंग।
कोरन पगि डोरन लगत तुव पोरन को रंग॥44॥
राते डोरन ते लसत चख चंचल इहि भाय।
मनु बिबि पूना अरुन में, खंजन बांध्यों आय॥45॥