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अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

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बेटी से आबाद हैं, सबके घर-परिवार ।
अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार ।।

       दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद ।
       बेटा-बेटी में बहुत, जननी करती भेद ।।
       बेटा-बेटी के लिए, हो समता का भाव ।
       मिल-जुलकर मझधार से, पार लगाओ नाव ।।
       माता-पुत्री-बहन का, कभी न मिलता प्यार ।
       अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार ।।

पुरुषप्रधान समाज में, नारी का अपकर्ष ।
अबला नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष ।।
कृष्णपक्ष की अष्टमी, और कार्तिक मास ।
जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास ।।
ऐसे रीति-रिवाज को, बार-बार धिक्कार ।
अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार ।।

       जिस घर में बेटी रहे, समझो वे हरिधाम ।
       दोनों कुल का बेटियाँ, करतीं ऊँचा नाम ।।
       कुलदीपक की खान को, देते क्यों हो दंश ।
       अगर न होंगी बेटियाँ, नहीं चलेगा वंश ।।
       बेटों जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार ।
       अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार ।।

लुटे नहीं अब देश में, माँ-बहनों की लाज ।
बेटी को शिक्षित करो, उन्नत करो समाज ।।
एक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व ।
व्रत-पूजन के साथ में, करो स्वयं पर गर्व ।।
सेवा करने में कभी, सुता न माने हार ।
अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार ।।

       माता बनकर बेटियाँ, देतीं जग को ज्ञान ।
       शिक्षित माता हों अगर, शिक्षित हों सन्तान ।।
       संविधान में कीजिए, अब ऐसे बदलाव ।
       माँ-बहनों के साथ मैं, बुरा न हो बर्ताव ।।
       क्यों पुत्रों की चाह में, रहे पुत्रियाँ मार ।
       अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार ।।