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अगर समझो तो मैं ही सब कहीं हूँ / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
अगर समझो तो मैं ही सब कहीं हूँ
नहीं समझो तो वैसे कुछ नहीं हूँ
कोई हर साँस में आवाज़ देता
'यहीं हूँ मैं, यहीं हूँ मैं, यहीं हूँ'
उतरती आती हैं परछाइयाँ-सी
कोई ढूढों तो इनमें -- मैं कहीं हूँ
कभी जो याद आये, पूछ लेना
लिए मुट्ठी में दिल अब भी वहीं हूँ
गुलाब! इनसे हरा है ज़ख्म दिल का
मैं काँटों को कभी भूला नहीं हूँ