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अगली पीढ़ी के लिए / बैर्तोल्त ब्रेष्त / मोहन थपलियाल

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1.

सचमुच मैं अन्धेरे युग में जी रहा हूँ
सीधी-सादी बात का मतलब बेवकूफ़ी है
और सपाट माथा दर्शाता है उदासीनता
वह, जो हँस रहा है
सिर्फ़ इसलिए कि भयानक ख़बरें
अभी उस तक नहीं पहुँची हैं

कैसा ज़माना है
कि पेड़ों के बारे में बातचीत भी लगभग जुर्म है
क्योंकि इसमें बहुत सारे कुकृत्यों के बारे में हमारी चुप्पी भी शामिल है।
वह जो चुपचाप सड़क पार कर रहा है
क्या वह अपने ख़तरे में पड़े हुए दोस्तों की पहुुँच से बाहर नहीं है?
यह सच है : मैं अभी भी अपनी रोज़ी कमा रहा हूँ
लेकिन विश्वास करो, यह महज संयोग है
इसमें ऐसा कुछ नहीं है कि मेरी पेट-भराई का औचित्य सिद्ध हो सके
यह इत्तफ़ाक है कि मुझे बख़्श दिया गया है
(क़िस्मत खोटी होगी तो मेरा ख़ात्मा हो जाएगा)
वे मुझसे कहते हैं: खा, पी और मौज कर
क्योंकि तेरे पास है
लेकिन मैं कैसे खा पी सकता हूँ
जबकि जो मैं खा रहा हूँ, वह भूखे से छीना हुआ है
और मेरा पानी का गिलास एक प्यासे मरते आदमी की ज़रूरत है।
और फिर भी मैं खाता और पीता हूँ।

मैं बुद्धिमान भी होना पसन्द करता
पुरानी पोथियाँ बतलाती हैं कि क्या है बुद्धिमानी:
दुनिया के टण्टों से ख़ुद को दूर रखना
और छोटी-सी ज़िन्दगी निडर जीना
अहिंसा का पालन
और बुराई के बदले भलाई
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के बजाय
उन्हें भूल जाना
यही बुद्धिमानी है
यही सब मेरे वश का नहीं
सचमुच मैं अन्धेरे युग में जी रहा हूँ।

2.

मैं अराजकता के दौर में आया शहरों में
जब भूख का साम्राज्य था
बगावतों के दौरान मैं लोगों से मिला
और मैंने भी उनमें शिरकत की
इस तरह गुज़रा मेरा वक़्त
जो मुझे दुनिया में मिला था।

क़त्लेआम के बीच मैंने खाना खाया
नींद ली हत्यारों के बीच
प्रेम में रहा निपट लापरवाह
और कुदरत को देखा हड़बड़ी में
इस तरह गुरा मेरा वक़्त
जो मुझे दुनिया में मिला था।

मेरे ज़माने की सड़कें दलदल तक जाती थीं
भाषा ने मुझे क़ातिलों के हवाले कर दिया
मैं ज़्यादा कर ही क्या सकता था
फिर भी शासक और भी चैन से जमे रहते मेरे बग़ैर
यही थी मेरी उम्मीद
इस तरह गुज़रा मेरा वक़्त
जो दुनिया से मिला था।

ताक़त बहुत थोड़ी थी लक्ष्य था बहुत दूर,
वह दीखता था
साफ़, गो कि मेरे लिए पहुँचना था कठिन
इस तरह गुज़रा मेरा वक़्त
जो मुझे दुनिया में मिला था।

3.

तुम जो कि इस बाढ़ से उबरोगे
जिसमें कि हम डूब गए
जब हमारी कमज़ोरियों की बात करो
तो उस अन्धेरे युग के बारे में भी सोचना
जिससे तुम बचे रहे
जूतों से ज़्यादा देश बदलते हुए
वर्ग-संघर्षों के बीच से हम गुज़रते रहे चिन्तित
जब सिर्फ़ अन्याय था और कोई प्रतिरोध नहीं था।

हम यह भी जानते हैं कि
कमीनगी के प्रति घृणा भी
थोबड़ा बिगाड़ देती है
अन्याय के ख़िलाफ़ गुस्सा भी
आवाज़ को सख़्त कर देता है
आह हम
जो भाईचारे की ज़मीन तैयार करना चाहते थे
ख़ुद नहीं निभा सके भाईचारा
लेकिन तुम जब ऐसे हालात आएँ
कि आदमी, आदमी का मददगार हो
हमारे बारे में सोचना
तो रियायत के साथ!

(1936-38)

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल