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अचरज को देखा है / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
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क्या तुमने कल के सूरज को देखा है
वही जिसे गांधारी ने
था रात बरा
उस बेला में था
सोना यह शुद्ध खरा
हमने आदिम उस अचरज को देखा है
वही घड़ी थी
जब बोले थे पत्थर भी
धन्य हुए थे देख दृश्य
पूजाघर भी
हमने उस पावन पदरज को देखा है
लाँघ पहाड़ों को
सूरज वह आया था
उसकी ही अंजुरी में
सिंधु समाया था
हमने उस दहके कुंभज को देखा है