Last modified on 26 अप्रैल 2013, at 21:31

अजब गुलशन का मंज’र हो गया है / पवन कुमार

अजब गुलशन का मंज’र हो गया है
यहाँ हर फूल नश्तर हो गया है

तरसते हैं कहीं दो बूँद को लोग
कहीं हरसू समन्दर हो गया है

कभी खुद को नहीं देखा था जिसने
सुना है आईनागर हो गया है

कहीं चुभता है मखमल भी बदन में
कहीं फुटपाथ बिस्तर हो गया है

हमारे दोस्तों के खेलने को
हमारा दिल भी चौसर हो गया है

बिना मक’सद सहर से शाम करना
यही अपना मुक’द्दर हो गया है

ख़लाओं में उतरना चाहता हूँ
बहुत दिलकश ये मंज’र हो गया है

हरसू = हर तरफ, आईनागर = आईना बनाने वाला, खला = आकाश