अजल भी नहीं आती है खौफे़ से याँ,
जो वह दान उलफत लगाए हुए हैं।
जिगर पर है कारी ज़खम मुश्फिकें मन,
निगह तीर वह जो चढ़ाए हुए हैं।
धरे दामे गेसू में दाना ए तिल का,
बहुत तायरे दिल फँसाए हुए हैं।
सताओ भली तर्ह बदरीनारायन,
बहु तुम से आराम पाए हुए हैं॥4॥