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अजीब वक्त है / कुंवर नारायण

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अजीब वक्त है -

बिना लड़े ही एक देश- का देश

स्वीकार करता चला जाता

अपनी ही तुच्छताओं के अधीनता !

 

कुछ तो फर्क बचता

धर्मयुद्ध और कीट युद्ध में -

कोई तो हार जीत के नियमों में

स्वाभिमान के अर्थ को फिर से ईजाद करता ।