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अदबी अदब के वास्ते ज़िद पर अडे़ हुए / महेंद्र अग्रवाल
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अदबी अदब के वास्ते ज़िद पर अडे़ हुए
चप्पल हवा में उड़ र्गइं जूते खड़े हुए
कितने सुखनवरों ने उखाड़े हैं आज तक
‘ग़ालिब‘ तुम्हारे नाम के खूंटे गड़े हुए.
माइक पकड़ के हो गए शायर अवाम के
शार्गिद आज देखिये कितने बड़े हुए.
थोड़ी समझ बढ़ाइये पेड़ों को देखिये
ऊपर कहां रहे कभी जितने गड़े हुए.
तलवार है कलम भी ये महसूस हो गया
मुद्दत हुई थी आपसे मुझको लड़े हुए.
लिखी तरह पे आपने जो भी ग़ज़ल लगा
आंधी के आम बीन के लाए झड़े हुए.
चेहरे से आपको दिखे उतने निशां कहां
जितने ग़ज़ल की रूह में अब तक हड़े हुए.
अदबी तो मानिये मुझे शायर न मानिये
ये शेर मिल गए थे सड़क पर पड़े हुए.