भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनार / ब्रजेश कृष्ण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस साल
इस छोटे-से शहर में
बहुत अधिक आये अनार

एक अनार के साथ
पृथ्वी की तरह लुढ़कता हुआ मैं
बचपन की ओर गया
वहाँ मिला मुझे पिता की शक्ल का एक आदमी
दो मुसम्मी के साथ ख़रीदा था उसने
एक अनार कराहते हुए
क्योंकि वह महँगा था और वैद्य ने बताया था
उसके बीमार बेटे के लिए
लाल अनार का पथ्य

बचपन से लौट कर
अचरज से देखता हूँ मैं
कि एक अनार सौ बीमार
की सदियों से चली आ रही
कहावत के खि़लाफ़
आज यहाँ इस शहर में सस्ता बिक रहा है
सरहद पार से आया हुआ
सुखऱ् लाल और मीठा अनार

बढ़ी हुई हैसियत
और सस्ते होने के बावजूद
एक बड़े ढेर से मैं
ख़रीदता हूँ सिर्फ दो अनार
एक उस बीमार बेटे के लिए
और दूसरा पिता की शक्ल के
उस आदमी के लिए
जो कब का जा चुका है यहाँ से।