भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्तिम रोटी / निकानोर पार्रा / राजेश चन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारे चाहने या न चाहने से कुछ नहीं होता,
हमारे पास केवल तीन ही विकल्प हैं :
कल, आज और कल ।

और केवल तीन भी कहाँ
क्योंकि जैसा कि दार्शनिक कहते हैं
कल तो कल ही है
इसका सम्बन्ध केवल हमारी स्मृतियों से है :
गुलाब पहले ही तोड़ लिए गए हैं
अब कोई भी पँखुड़ी मुरझा नहीं सकती ।

खेलने के लिए पत्ते
केवल दो ही बचे हैं :
वर्तमान और भविष्य ।

सच कहा जाए तो वे दो भी नहीं हैं
क्योंकि यह मानी हुई बात है कि
वर्तमान का कोई वज़ूद नहीं होता
सिवाय इसके कि यह अतीत का किनारा है
और यह नष्ट हो रहा है
यौवन की तरह ।

अन्तत: हमारे साथ केवल भविष्य रह गया है ।
मैं अपना गिलास उठाता हूँ
उस दिन के लिए जो कभी नहीं आता ।

लेकिन यही तो है
जो भीतर है हमारी हद के ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र