भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी खोज / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
इस फ्रेम में तीन आदमी हैं
ज़रा ध्यान से देखिए
दाएं कोने पर खड़ा
(कोई भी नाम दे लें
कोई फर्क नहीं पड़ता)
हां, दाएं कोने पर खड़ा
घटना के इन्तज़ार में है
वह उस घटना में विश्वास नहीं करता
पर इन्तज़ार है उसे उसी घटना का।
बीच में चलता आदमी
वक्त से आगे निकल जाने की
कोशिश में
वह इसमें विश्वास भी करता है
परिणाम की चिन्ता नहीं उसे
वक्त को पछाड़ना चाहता है यह आदमी
बाएं कोने पर खड़ा आदमी
मात्र एक दृष्टा है
क्षमा कीजिए
दृष्टा नहीं, दर्शक है
दृष्टा या दर्शक
कुछ भी कहिए
वक्त को पीट कर
अपने सांचे में ढालने की हिम्मत
वह खो चुका है।
घटना की इन्तज़ार करता आदमी।
समय को पछाड़ता आदमी।
समय का दर्शक आदमी।
अब आप ही देखिए
आप कहां हैं?