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अपनी पलकों पे मेरे अश्क़ सजाते जाओ / सिया सचदेव

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अपनी पलकों पे मेरे अश्क़ सजाते जाओ
दूर रह कर भी मुझे अपना बनाते जाओ

रोशनी के लिए मैं भी हूँ परेशां लेकिन
ये ज़रुरी तो नहीं आग लगाते जाओ

मिल गया भेस में इन्सां के फ़रिश्ता कोई
बात ये सारे ज़माने को बताते जाओ

इस भरी दुनिया में कोई तो है मेरा अपना
साथ हो तुम मेरे एहसास दिलाते जाओ

ये मोहब्बत का तक़ाज़ा तो नहीं है फिर भी
जाते जाते कोई एहसान जताते जाओ
 
इश्क़ ए रुसवा मुझे बाज़ार में ले आया है
तुम भी औरों की तरह दाम लगाते जाओ

हक़परस्तों से गुज़ारिश है यही एक सिया
मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाते जाओ