अपनी बात / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
कविता विचार नहीं होती
पर बिना विचार होती है क्या कविता
कविता भाव नहीं होती
पर भावहीन होती है क्या कविता
बहुत कुछ होता है कविता में
जो नहीं होता
वह भी होने वाला होता है कविता में
जो है और जो नहीं है
के बीच की खदबद ही तो होती है कविता
कविता सिर्फ कविता नहीं होती
थोड़ी-सी कथा, संस्मरण
और अपने समय का इतिहास भी होती है कविता
कल भी और आज भी होती है कविता
कविता अगर कविता होती है
हार में भी बनकर जीत मेरे साथ होती है कविता
डूब रही होती हूँ और मेरे बचने की आस होती है कविता
जो चाहती हूँ कहना कह नहीं पाती
मेरे अंतर्मन की पुकार को
साफ-साफ कहती है कविता
मेरे लिए तब बड़ी खास होती है कविता
इसकी है उसकी है पर मुझसे भी
होकर जुदा कहाँ जुदा होती है कविता?
हाँ, कई बार ऐसा ज़रूर होता है
कि मैं रोती हूँ चुपचाप, ज़ोर से हँस देती है कविता...
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रचना में
लेखक समकाल रचता है
पर उसमें मिला होता है भूतकाल
समकाल व्यापक है इतना
कि उसमें कई सदियों की धड़कनें समाती हैं
कई कालखंडों की पदचाप
कई-कई सदियों के आँसू और हँसी सुनाई देती है
नाम, चेहरे और युग बदलने से ही
हालात नहीं बदल जाते
जिन आँखों में नमी आज है उनमें कल भी थी
जिन चेहरों पर हँसी कल न थी
आज भी कहॉं है?
जो कल हाशिये पर थे
आज भी हैं
कविता चाहती है उदास चेहरों पर हँसी
आज भी, कल भी।