अपने करीब आप ने आने नहीं दिया
दिल को सुकून भी कभी पाने नहीं दिया
शिक़वे शिकायतें तो कभी कम नहीं हुईं
हम को ही दिल की बात सुनाने नहीं दिया
हर रोज़ पत्थरों से लगीं ठोकरें मगर
जख़्मों से पाँव भी तो बचाने नहीं दिया
बढ़ती गयी जो तीरगी एहसास गुम हुए
कोई चिराग फिर भी जलाने नहीं दिया
एहसान आपका तो बहुत मानते हैं हम
कोई शिकन भी माथ पे आने नहीं दिया
दहलीज़ पे बहार तो आयी दफ़ा कई
गोशा ए दिल किसी को सजाने नहीं दिया
उम्मीद पे कायम है जमाने का हर बशर
हमको ही कोई आस बंधाने नहीं दिया