भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने लोग पराया लागै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
Kavita Kosh से
अपने लोग पराया लागै
यही सेॅ दुनियाँ माया लागै।
गाछ-विरिछ सब कटलोॅ जाय
धूपे रं ई छाया लागै।
तोरोॅ वास मनोॅ मेॅ होथैं
चन्दन रं ई काया लागै।
सच्चा मित्र मिलै जों, ऊ तेॅ
घर के छत के पाया लागै।
आखिर कीचड़ मेॅ फँसनै छै
जों कंचन में काया लागै।