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अपूर्व / प्रताप सहगल

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शून्य का अनन्त विस्तार
झील के पानी पर तैरता आता है
और मन की दुनिया पर
फैल जाता है।
आकाश से झांकती किरण
अनन्त
और मन के गठबन्धन की साक्षी है।