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अब कहाँ मिलने की सूरत रह गयी! / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
अब कहाँ मिलने की सूरत रह गयी!
दिल में बस यादों की रंगत रह गयी!
देखिये, टूटी हैं कब ये तीलियाँ
जब नहीं उड़ने की ताक़त रह गयी
हम किनारे पर तो आ पहुँचे, मगर
धार में डूबें, ये हसरत रह गयी
बन गयीं पत्थर की सब शहज़ादियाँ
आँख भर लाने की आदत रह गयी
किस तरह उनको मना पायें गु़लाब
जिनको ख़ुशबू से शिकायत रह गयी