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अब ये फूलों पे चल नहीं सकती / अनु जसरोटिया
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अब ये फूलों पे चल नहीं सकती
मेरी क़िस्मत बदल नहीं सकती
दिल में कोई क़याम कर ले जब
याद उसकी निकल नहीं सकती
सारी दुनिया बदल भी जाए अगर
माँ की ममता बदल नहीं सकती
जिसकी रग रग में ज़हरे-नफ़रत हो
शाख़ हरगिज़ वो फल नहीं सकती
ऐसी हस्ती भी कोई हस्ती है
राहे-हक़ पर जो चल नहीं सकती
हर गुले तर पे आयेगा भंवरा
उसकी फ़ितरत बदल नहीं सकती
ज़ीस्त है रौशनी की पर्वरदा
ज़ुल्मतों में ये ढल नहीं सकती
एक ऐसी घड़ी भी आती है
आ के हरगिज़ जो टल नहीं सकती
ये खटकती रहेगी कांटे सी
दिल की हसरत निकल नहीं सकती
ज़िन्दगी राहे-इश्क़ में अक्सर
खा के ठोकर संभल नहीं सकती