अभी छोर पर तुम रहो मौन धारे / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
अभी छोर पर तुम रहो मौन धारे,
हृदय में उठी कामनाओ सुनो! ना।
अभी तो जगत पीर कहनी कलम को,
हृदय में उठी भावनाओ सुनो! ना।
अभी रात्रि रूपी कुटिल मंथरा को,
पढ़ानी सियावर सुपावन कहानी।
समर्पण भरत सम रहे उर भवन में,
भले प्राण जाये प्रतिष्ठा न जानी।
यही बात उर में जगानी स्वयं के,
हृदय में उठी पावनाओ सुनो! ना।
अभी छोर पर तुम रहो मौन धारे,
हृदय में उठी कामनाओ सुनो! ना।
कहीं त्याग की बात होगी अगर तो,
लखन उर्मिला का विरह वाँच लेना।
जगे रतजगे कर्म आधीन हर पल,
मगर मन जुड़े थे गिरह वाँच लेना।
वचनबद्ध गरिमा नहीं त्याग पाएँ,
हृदय में उठी वासनाओ सुनो! ना।
अभी छोर पर तुम रहो मौन धारे,
हृदय में उठी कामनाओ सुनो! ना।
कभी डाहना कोप उर में पले तो,
नहीं प्रश्नवाचक लगे कैकई पर।
दशों ओर स्यंदन सुभट जो चलाते,
उठे तर्जनी तुच्छ उस लरकई पर।
मरण पीर की यह परीक्षा सुखद हो,
हृदय में उठी तावनाओ सुनो! ना।
अभी छोर पर तुम रहो मौन धारे,
हृदय में उठी कामनाओ सुनो! ना।