भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरी रूपसी, मेरे सम्मुख मत गाओ / अलेक्सान्दर पूश्किन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अलेक्सान्दर पूश्किन  » संग्रह: धीरे-धीरे लुप्त हो गया दिवस-उजाला
»  अरी रूपसी, मेरे सम्मुख मत गाओ

अरी रूपसी, मेरे सम्मुख मत गाओ
करुण जार्ज़िया गीत,
किसी दूसरे तट, जीवन की याद दिलाएँ
भूला हुआ अतीत।

क्रूर तराने उफ़ वे तेरे, ज़ुल्म करें
मुझको स्मरण कराएँ,
रात चाँदनी, स्तेप, दुखी-सी वह युवती
स्मृतियाँ घिर-घिर आएँ।

देख तुझे उस प्यारी, दुख की छाया को
भूल तनिक मैं जाता,
लेकिन जब तुम गाती हो, उसको फिर से
बरबस सम्मुख पाता।

अरी रूपसी, मेरे सम्मुख मत गाओ
करुण जार्ज़िया गीत,
किसी दूसरे तट जीवन की याद दिलाएँ
भूला हुआ अतीत।


रचनाकाल : 1828