भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अर्थ नूतन उभरने लगे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
अर्थ नूतन उभरने लगे।
अब हैं आदर्श मरने लगे॥
भूख ने ज्ञान को खा लिया
सब ग़लत काम करने लगे॥
सब तुम्हारा ही स्वागत करें
फूल शाखों से झरने लगे॥
आ गए थे जो तुम साथ में
ग़म के पर्वत बिखरने लगे॥
छू लिया प्यार ने जिस घड़ी
स्वप्न आँखों में भरने लगे॥
अब गुणा भाग सब छोड़ दो
इस गणित से हैं डरने लगे॥
उग रही हैं नयी कोपलें
फिर हैं मौसम सँवरने लगे॥