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अलि हे! हरसिंगार भी फूले / रामगोपाल 'रुद्र'

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झूल रहे अब तक आशा से
मेरे मन के झूले!

ललित मयंक कुमुद-अम्बर में,
कलित कुमुदिनी शशि के सर में;
आज मुदित मन-मन घर-घर में;
मेरे ही... घर भूले!

विकल विफल वंचित मृग-दृग-दल;
कम्पित उर ममताकुल, प्रतिपल;
शशि को कैसे छू ले!