भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अविचारित बोध के लिए / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
अविचारित बोध के लिए
चम्मच-भर शोध के लिए
आओ, हम पोथियाँ पढ़ें !
अख़बारें
मैग्ज़ीन चाट लें
अँगुली को दाँतों में दाब काट लें,
दुनियावी रंग-ढंग का
नाबालिग शील-भंग का
इस-उसपर दोष सब मढ़ें !
धरती को
तज / उड़ें — पेंग लें
आँखों से पन्नों पर ख़ूब रेंग लें,
जड़ को फुंकार-छार कर
फुनगी को पोस-प्यार कर
अपनी ही मूर्त्तियाँ गढ़ें !
सनदों को
मसनदें मान लें
सच पर बहुरंगी चादरें तान लें,
अभिनय के आस–पास से
कण्ठज जो, रुदन–हास से
कलमूँही कुर्सियाँ चढ़ें !
18 अप्रैल 1973